“अनुभूति – जब आँखों से नहीं, मन से देखा”
आज कहीं जाकर यह महसूस किया कि जीवन बिना आँखों के भी देख सकता है,
बिना आवाज़ के भी सुन सकता है,
और बिना शब्दों के भी बहुत कुछ कह सकता है।
कभी-कभी जीवन में कुछ लोग अनायास ही हमें यह सिखा जाते हैं —
कि “कुछ न होते हुए भी, पूर्ण कैसे रहा जा सकता है।”
मुझे अनुभूति विज़न सेवा संस्थान जाने का सौभाग्य मिला,
जहाँ मूक-बधिर बच्चों के बीच कुछ पल बिताने का अवसर मिला।
उनके बीच रहकर महसूस हुआ कि
हम अक्सर जिन बातों पर शिकायत करते हैं,
वे बच्चे उन्हीं बातों पर मुस्कान बाँटना जानते हैं।
उनके सधे हुए हाथों से बने दीये, रंग-बिरंगी सजावटी वस्तुएँ,
चित्र और हस्तकला — हर रचना जैसे जीवन की कहानी कह रही थी।
हर एक में उजाला था, विश्वास था, और आत्मसम्मान की चमक थी।
राहुल सर ने वहाँ एक वाक्य कहा जो मन में गहराई तक उतर गया —
“We count ability, not disability.”
(हम योग्यता गिनते हैं, अक्षमता नहीं।)
वहां बैठकर एक सीख मिली —
इन बच्चों को सहानुभूति नहीं, प्रोत्साहन चाहिए।
ज़िंदगी के संघर्षों से लड़ना और उन पर विजय पाना ही इनकी पहचान है।
अगर कभी कुछ गलत हो जाए,
या कुछ अधूरा रह भी जाए,
तो भी ठहरना नहीं — मुस्कुराकर आगे बढ़ना है।
उसी क्षण, एक प्यारी-सी बच्ची ने मधुर स्वर में गाना सुनाया —
“ज़िंदगी की यही रीत है, हार के बाद ही जीत है…”
वह गीत जैसे वातावरण में नहीं,
हम सबके मन में गूँज उठा।
सच ही कहा —
जब दिल हार मानने लगे, तो इन बच्चों की मुस्कान याद रखिए —
क्योंकि निश्चित ही जीत है।




